खोपड़ी की हंड़िया में सवाल की दाल है
उत्तरों की छौंक नहीं व्यर्थ का उबाल है
कलम की करछुल का भाल में भूचाल है
पेंदी की रगड़ से हाल ये बेहाल है
ओंठो के बीच दबी बीड़ी की नाल है
आग फूंक धुंआ खींच राख सा मलाल है ,
पुष्टि नहीं तुष्टि नहीं जाल है जंजाल है
स्वप्निल यथार्थ में कंगाल ये कंकाल है ,
रौंद दिए सत्य के हाथ में कुछ बाल है
बालों की खाल पर उठ रहे बवाल हैं ,
पत्र-पत्र यत्र-तत्र पत्रकार ताल है
सत्यमेव जयते से इनका रक्त लाल है ।
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