Monday, June 13, 2011

पत्रकारिता का यथार्थ

खोपड़ी की हंड़िया में सवाल की दाल है

उत्तरों की छौंक नहीं व्यर्थ का उबाल है

कलम की करछुल का भाल में भूचाल है

पेंदी की रगड़ से हाल ये बेहाल है

ओंठो के बीच दबी बीड़ी की नाल है

आग फूंक धुंआ खींच राख सा मलाल है ,

पुष्टि नहीं तुष्टि नहीं जाल है जंजाल है

स्वप्निल यथार्थ में कंगाल ये कंकाल है ,

रौंद दिए सत्य के हाथ में कुछ बाल है

बालों की खाल पर उठ रहे बवाल हैं ,

पत्र-पत्र यत्र-तत्र पत्रकार ताल है

सत्यमेव जयते से इनका रक्त लाल है ।

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आयुषवेद by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव