Wednesday, May 25, 2011

हेमन्त फ़ाउन्डेशन द्वारा हिन्दी-उर्दू साझा मंच निर्माण हेतु गोष्ठी

बांए से दांए : संतोष श्रीवास्तव(मैनेजिंग ट्रस्टी,हेमन्त फ़ाउंडेशन), वरिष्ठ साहित्यकार श्री अहमद सोज़, वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार श्री आलोक भट्टाचार्य, वरिष्ठ हिंदी-उर्दू लेखिका श्रीमती नग़मा जावेद मलिक

बांए से दांए: समीक्षक-कवियत्री श्रीमती सुमीता केशवा, उर्दू वेबसाइट "लंतरानी" की संचालिका-मुख्यसंपादिका श्रीमती मुनव्वर सुल्ताना, हेमन्त फ़ाउंडेशन के उपाध्यक्ष श्री सोनू पाहूजा


बाएं से दांए : वरिष्ठ हिंदी-उर्दू लेखिका श्रीमती नग़मा जावेद मलिक, कवियत्री-भाषाविदुषी श्रीमती शिल्पा सोनटक्के, समीक्षक-कवियत्री श्रीमती सुमीता केशवा
बांए से दांए : संतोष श्रीवास्तव(मैनेजिंग ट्रस्टी,हेमन्त फ़ाउंडेशन), वरिष्ठ साहित्यकार श्री अहमद सोज़, वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार श्री आलोक भट्टाचार्य, वरिष्ठ हिंदी-उर्दू लेखिका श्रीमती नग़मा जावेद मलिक
बांए से दांए : उर्दू शायरा श्रीमती आयशा शेख समन, संतोष श्रीवास्तव(मैनेजिंग ट्रस्टी,हेमन्त फ़ाउंडेशन), वरिष्ठ साहित्यकार श्री अहमद सोज़

बाएं से दांए : उर्दू वेबसाइट "लंतरानी" की संचालिका-मुख्यसंपादिका श्रीमती मुनव्वर सुल्ताना, हेमन्त फ़ाउंडेशन के विश्वस्त श्री सोनू पाहूजा



संभावनाशील युवा कवि स्व.हेमंत के जन्मदिन २३ मई के अवसर पर जे.जे.टी. विश्वविद्यालय [राज.] के साहित्यिक विभाग हेमंत फ़ाउंडेशन ने हिन्दी उर्दू ज़बानों के पारस्परिक सौहार्द एवं विकास के मद्देनज़र 'आशिकाने हिन्दी-उर्दू मंच' की स्थापना की। इस मंच का दोनों ज़बानों का साहित्यकारों ने स्वागत किया। स्व. हेमंत की स्मृति में आशिकाने हिन्दी उर्दू मंच के सदस्यों वरिष्ठ शायर अहमद सोज़, आलोक भट्टाचार्य, शायरा संतोष श्रीवास्तव, सुमीता केशवा, डा. नगमा जावेद, डा. आयशा शेख, शिल्पा सोनटके ने अपनी गज़लों, कविताओं से कार्यक्रम को भावभीना बना दिया। फ़ेमस टी.वी कलाकार सोनू पाहूजा ने उपस्थित सदस्यों का धन्यवाद किया।हिन्दी वेबपत्रिका शब्द के संपादक डा. रुपेश श्रीवास्तव तथा लंतरानी वेबपत्रिका की संपादक मुनव्वर सुल्ताना ने अपनी वेबसाइट का प्रदर्शन कर हेमंत फ़ाउंडेशन को नया आयाम दिया। मंच के अनुपस्थित सदस्यों विनोद टिबड़ेवाला, डा. अब्दुल सत्तार दलवी तथा जु़बैर आज़मी ने शुभकामनाएं भेजीं।
सुमीता केशवा
कार्याध्यक्ष-हेमंत फ़ाउंडेशन

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और केदारनाथ अग्रवाल जन्मशती पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय समारोह



लाहौर-पाकिस्तान से इस आयोजन में शरीक होने आई फ़ैज़ साहब की सुपुत्री डॉ. मुनीज़ा हाश्मी ने प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा 14-15 मई को इस्पात नगरी भिलाई में आयोजित फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और केदारनाथ अग्रवाल जन्मशती पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय समारोह के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए अपना वक्तव्य देते हुए अपने बचपन की यादों से सभागार को द्रवित कर दिया। उन्होंने सभी हाज़रीन को लाहौर के फ़ैज-घर आने की दावत भी दी तथा सं

स्थान का शुक्रिया अदा किया। इसके पूर्व उन्होंने आयोजन का शुभारम्भ देश-विदेश के सैकड़ों वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति में मंगलदीप प्रज्ज्वलित कर एवं फ़ैज़ साहब के चित्र पर माल्यार्पण कर विधिवत उद्घाटन किया।

फ़ैज़ प्रगतिशील आंदोलन की प्रेरणा में रहेगें – खगेंद्र ठाकुर

भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के आधारस्तम्भ एवं प्रख्यात आलोचक डॉ. खगेन्द्र ठाकुर (पटना) ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि दिल्ली में सम्पन्न प्रेमचंद इंटरनेशनल सेमीनार में उन्होंने पहली बार फ़ैज़ के दीदार किये और उनकी नज़्म सुनी। उन्होंने कहा कि कविता के इतिहास में शायर-कवियों का क़द कम होता गया है। प्रगतिशील आन्दोलन में हमने हमने हमेशा फ़ैज, केदार और नागार्जुन आदि को अपनी सोच और प्रेरणा के केन्द्र में रखा है। पूर्वज शायर-कवियों ने जो वैचारिक लड़ाइयाँ लड़ी हैं, उस दाय को, विरासत को हम सम्हाल नहीं पा रहे हैं इसलिये भी महत्वपूर्ण रचनायें और बड़े रचनाकार सामने नहीं आ पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह तो माया और ममता का समय है - इसमें ऐसे आयोजन भी संभव हैं और हो रहे हैं - यह मेरे लिये संतोष और आशा का आसमान खोलते हैं।

महत्वपूर्ण साहित्यकारों को अँधेरे से निकालना होगा - विश्वरंजन

प्रमोद वर्मा संस्थान के अध्यक्ष श्री विश्वरंजन ने स्पष्ट किया कि मुक्तिबोध, हरिशंकर परसाई, श्रीकांत वर्मा और प्रमोद वर्मा ऐसे साहित्य-साधक हुये हैं जिनसे आज भी लेखक अपनी धार लेते हैं। ऐतिहासिकता में प्रमोदजी के अनदेखे किये जाने की स्थिति में यह संस्थान एक नैतिक लेखकीय दायित्व के तहत अस्तित्व में आया। इससे हम यह संदेश भी देना चाहते हैं कि ऐसे बहुतेरे महत्वपूर्ण साहित्यकार हैं जिन्हें व्यवस्थित रूप से अँधेरे में ही रखने के कुचक्र सक्रिय हैं। अतः प्रमोद वर्मा संस्थान इस प्रवृत्ति, प्रकृति और निष्क्रियता से उपजे शून्य को भरने

का एक विनम्र प्रयास है। अधिकाधिक लेखकों को प्रकाशित करना इसकी एक कड़ी है।

मेरी आश्नाई की शुरुआत फ़ैज़ से – डॉ. धनंजय वर्मा

प्रखर समालोचक डॉ. धनंजय वर्मा ने विस्तार से फ़ैज़ की शायरी और उनके द्वन्द्व पर प्रकाश डालते हुये कहा कि उर्दू शायरी से मेरी आश्नाई की शुरूआत फ़ैज़ की शायरी से ही हुई थी।

साहित्य मानवीय संस्कृति का विकास करे- डॉ. अजय तिवारी

आलोचक डॉ. अजय तिवारी ने कहा कि साहित्य को इतिहास से अलग कर के नहीं देखा जा सकता। वैयक्तिक प्रतिभा के साथ इतिहास का चक्र ही ऐसे नामचीन लेखकों को जन्म देता है। क्या कारण है कि 1910-11 एक-दो नहीं 23 महत्वपूर्ण नामी-गि़रामी लेखकों जन्मशती का वर्ष है। ये तमाम लेखक स्वतंत्रता और क्रान्तिकारी आन्दोलनों की उपज हैं। हम भारत में केदार और फ़ैज़ की जन्म शताब्दी एक मंच पर एक साथ मना रहे हैं, यह भारत की सांस्कृतिक बुनियादी विशेषता है जो साहित्य में

भाषा और सरहदों की सीमाओं दरकि़नार कर लोक-कल्याण को सर्वोपरि रखती है। साहित्य की यही भूमिका भी है कि वह मानवीय संस्कृति का विकास करे।

उद्घाटन अवसर पर प्रमोद वर्मा संस्थान के महासचिव व शायर मुमताज़ ने स्वागत वक्तव्य दिया। संस्थान के उपाध्यक्ष व श्री कवि रवि श्रीवास्तव ने उद्घाटन सत्र का संचालन किया। स्वागताध्यक्ष श्री अशोक सिंघई अतिथियों का पुष्पगुच्छ से हार्दिक स्वागत किया।

नयी कृतियों का विमोचन

इस अवसर पर विश्वरंजन के सम्पादन में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ पर प्रकाशित एकाग्र ‘सच जि़न्दा है अब तक’ एवं केदारनाथ अग्रवाल पर प्रकाशित एकाग्र ‘बांदा का योगी’ का लोकार्पण हुआ। इन महत्वपूर्ण संकलनों के साथ लाला जगदलपुरी की किताब ‘गीत धन्वा’, डॉ. दयाशंकर शुक्ल की पुनर्प्रकाशित ‘छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य का अध्ययन’, शिवशंकर शुक्ल की ‘डोकरी के कहिनी’, रवि श्रीवास्तव की ‘नदी थकने नहीं देती’, सुनीता वर्मा की ‘घर घुंदिया’, शंभुलाल बसंत की ‘इंक्यावन नन्हे गीत’, विश्वरंजन/आर.के. विज़/जयप्रकाश मानस की ‘इंटरनेट, अपराध और कानून’ के साथ ही जयप्रकाश मानस की तीन अन्य कृतियों ‘विहंग’, ‘जयप्रकाश मानस की बाल कवितायें’ तथा छत्तीसगढ़ की लोककथाएँ रमेश गुप्त का कविता संकलन ‘त्रिवेणी’, आदि कृतियों के लोकार्पण विशिष्ट अतिथियों द्वारा सम्पन्न हुए।

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ पर केंद्रित प्रथम सत्र ‘क़ैद-ए-क़फ़स से पहले’ में बीज वक्तव्य दिया पाकिस्तान से पधारे अब्दूर रऊफ़ । इस सत्र में कुमार पंकज, डॉ. धनंजय वर्मा, अजय तिवारी सहित मुनीज़ा हाश्मी ने फ़ैज़ की शायरी पर व्यापक विमर्श किया । सत्र की अध्यक्षता की पाकिस्तान की वरिष्ठ आलोचक आरिफ़ा सैयदा । सत्र का सुव्यवस्थित संचालन किया युवा आलोचक पंकज पराशर ने । द्वितीय सत्र ‘शामे-सहरे-यारां’ की अध्यक्षता की आलोचक याकूब यावर ने । बीज वक्तव्य दिया मौसा बख़्श ने । इस अवसर, खगेंद्र ठाकुर, डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे, मुनीजा हाश्मी, पंकज पराशर, फ़ज़ल इमाम मल्लिक और डॉ. रोहिताश्व आदि वक्ताओं ने अपनी बात रखी ।

दो प्रतिष्ठित कवियों का सम्मान

रात्रि कालीन आयोजन में समग्र व विशिष्ट साहित्यिक योगदान के लिये उर्दू के नामचीन वरिष्ठ शायर ज़नाब बदरुल क़ुरैशी बद्र, दुर्ग एवं भिलाई के वरिष्ठ कवि श्री हरीश वाढेर को

प्रमोद वर्मा सम्मान से सम्मानित किया गया । उन्हें संस्थान की ओर से शॉल, श्रीफल, प्रतीक चिन्ह और संस्थान द्वारा प्रकाशित कृतियाँ आदि प्रदान कर अंलकृत किया गया ।

अन्तरराष्ट्रीय मुशायरा ‘महफ़िल-ए-सुख़न’ सम्पन्न


प्रगतिशील शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जन्मशती समारोह के अंतिम और रात्रिकालीन सत्र में देश-विदेश के ख्यातिलब्ध शायरों ने अपनी शायरी से फ़ैज़ साहब को याद किया और गंगा-जमुनी संस्कृति को और भी पुख़्ता करते हुये उर्दू और हिन्दी ज़ुबानों की मिलनसारिता सिद्ध की। इस अन्तरराष्ट्रीय मुशायरे की सदारत (अध्यक्षता) पाकिस्तान की मशहूर शायरा डॉ. आरिफ़ा सैयदा साहिबा ने की। लाहौर से भिलाई पधारीं फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की साहबज़ादी डॉ. मुनीज़ा हाश्मी मुख्य अतिथि थीं। मौक़े पर पाकिस्तान के जिओ टीव्ही. के डायरेक्टर अब्दूर रऊफ़ साहब एवं दुर्ग के महापौर डॉ. एस.के. तमेर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

अध्यक्षीय आसंदी से मुबारक़बाद देते हुये डॉ. आरिफ़ा सैयदा साहिबा ने कहा कि उर्दू और हिंदी भाषायें, पाकिस्तानियों और हिन्दुस्तानियों की तरह मिलनसार हैं। यह हमारी सांस्कृतिक एकरूपता का बुनियादी और ठोस बयान है। उन्होंने फ़ैज़ साहब की रचनाओं का प्रभावी पाठ भी किया। संस्थान के निदेशक श्री जयप्रकाश मानस ने तरन्नुम में फ़ैज़ साहब की ग़ज़लों का पाठ कर महफ़िल को भाव-विभोर कर दिया। देर रात तक चले मुशायरे में बनारस विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के प्रमुख डॉ. याक़ूब यावर, दिल्ली के युवा कवि व पत्रकार फ़ज़ल इमाम मल्लिक के साथ स्थानीय तथा जाने-माने शायरों में फ़ैज़ सम्मान से सम्मानित बदरूल क़ुरैशी बद्र, अशोक शर्मा, मुकुन्द कौशल, नजीम कानपुरी, क़ाविश रायपुरी, डॉ. संजय दानी, साकेत रंजन प्रवीर, डॉ. नौशाद सिद्दीकी, रामबरन कोरी ‘क़शिश’, मोहतरमा नीता काम्बोज़ और निज़ामत कर रहे शायर मुमताज़ ने अपनी नायाब रचनायें पेश कीं।

‘जहाँ गिरा मैं, कविताओं ने मुझे उठाया’


द्वितीय दिवस 15 मई, 2011 प्रगतिशील धारा के प्रमुख कवि केदारनाथ अग्रवाल जन्मशती समारोह के अन्तर्गत को देश के ख्यातिलब्ध कवियों ने कविताओं की धार से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। भिलाई निवास में देर रात तक सम्पन्न ‘जहाँ गिरा मैं, कविताओं ने मुझे उठाया’ राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी में देश के नामचीन कवियों ने बेहतरीन कविताओं से केदारजी को शब्दांजलि दी। इस अति महत्वपूर्ण काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. धनंजय वर्मा (भोपाल), डॉ. खगेन्द्र ठाकुर (पटना), डॉ. अजय तिवारी (नई दिल्ली), डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल (नई दिल्ली) एवं प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के अध्यक्ष व कवि श्री विश्वरंजन, पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ़ ने की।


सर्वप्रथम संस्थान के अध्यक्ष श्री विश्वरंजन ने श्रीमती सुनीता अग्रवाल (केदारजी की पौत्री) का शॉल, श्रीफल व स्मृतिचिन्ह एवं संस्थान की कृतियाँ भेंट कर सम्मान किया।

पहले चरण में केदारजी की कविताओं का पाठ उनकी पौत्री श्रीमती सुनीता अग्रवाल, संस्थान के निदेशक श्री जयप्रकाश मानस व मुमताज ने किया। अध्यक्षीय आसंदी से डॉ. खगेन्द्र ठाकुर ने आयोजन की सफलता पर बधाई देते हुये कहा कि केदारजी की कविताओं के बरअक्स उनकी शान में आज पढ़ी गई कविताओं में आज के समय की अनुगूँज है।

इस गोष्ठी की विशेषता यह रही कि अध्यक्ष मंडल से डॉ. खगेन्द्र ठाकुर एवं श्री विश्वरंजन ने भी काव्यपाठ किया। इनके साथ प्रमोद वर्मा सम्मान से सम्मानित हरीश वाढेर (भिलाई), फ़ज़ल इमाम मलिक (दिल्ली), माताचरण मिश्र (भोपाल), डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे (लातूर), प्रो. रोहिताश्व (गोवा), भारत भारद्वाज (नई दिल्ली), नंद भारद्वाज (जयपुर), श्री श्रीप्रकाश मिश्र (इलाहाबाद), डॉ., प्रताप राव कदम (खण्डवा), रमेश खत्री (जोधपुर), संतोष श्रीवास्तव (मुम्बई) ने अपनी 'औरत' कविता पढ़कर समां बांध दिया और खास फरमाइश पर चंद शेर सुनाये , भोपाल से आई जया केतकी ने अपने दो उत्कृष्ट रचनाओ का पथ किया , इला मुखोपाध्याय (भिलाई), संतोष झाँझी (भिलाई), श्री रवि श्रीवास्तव (भिलाई) एवं संचालक अशोक सिंघई ने अपनी उत्कृष्ट रचनायें प्रस्तुत कीं। संस्थान के उपाध्यक्ष व कवि अशोक सिंघई ने गोष्ठी का संचालन किया। संस्थान के वरिष्ठ उपाध्यक्ष व लेखक डॉ. सुशील त्रिवेदी ने आभार व्यक्त किया ।

Tuesday, May 24, 2011

जया केतकी द्वारा संतोष श्रीवास्तव का साक्षात्कार


जीवन परिचयः मध्यप्रदेश के मंडला जिले में 23 नवम्बर 1958 को जन्म लेकर साहित्य की साधना में 34 वर्ष से रत संतोष जी हँसमुख व्यक्तित्व की धनी हैं। रायपुर प्रवास के दौरान आपसे बातचीत का अवसर प्राप्त हुआ। हाल ही में रायपुर की ‘ऋचा‘ नामक संस्था द्वारा सम्मानित संतोष श्रीवास्तव जी की अब तक 150 से अधिक कहानियाँ प्रकाषित हो चुकी हैं। वर्तमान में मुम्बई के श्री घनश्यामदास पोत्दार महाविद्यालय में शोध समन्वयक के पद पर कार्यरत संतोष जी प्रमुख रूप से स्त्री विमर्श पर आबद्ध हैं। उनके परिवार में उनके पति और बेटे का निधन हो गया है। उनके अनेक कविता संग्रह, कहानी संग्रह तथा उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी कुछ रचनाओं पर छात्रों द्वारा शोध किया जा रहा है।
जया केतकी :- अन्य महिलाओं की तरह स्थापित होने के लिए आपको भी संघर्ष करना पड़ा?
संतोष श्रीवास्तव :- लेखन के क्षेत्र में स्थापित होने के लिए मुझे संघर्ष नहीं करना पड़ा। पढ़े-लिखे प्रतिष्ठित परिवार में मेरा जन्म हुआ। मुझे घर में ही लेखन का माहौल मिला। मेरे बड़े भाई विजय वर्मा लेखक थे। मेरी बहन प्रमिला वर्मा भी लिखती हैं। मैं यदि यह कहूँ कि लेखन ही मेरे जीवन का आधार है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
जया केतकी :- संतोष जी आपकी पहली रचना कौन सी थी?
संतोष श्रीवास्तव :- जब मैंने लिखना आरम्भ किया तो ये नहीं सोचा था कि संभालकर रखूँगी या किसी पत्र-पत्रिका में रचना छपेगी। आरम्भ में मैंने कविताएं ही लिखी। पहली रचना तो याद नहीं आती, पर हाँ 1970 में मेरी पहली कहानी ‘‘शंख और सीपियाँ‘‘ तत्कालीन पत्रिका धर्मयुग में प्रकाशित हुई। उससे मेरा लेखिका होना तय हुआ।
जया केतकी :- आज विभिन्न माध्यमों में हिन्दी का जो प्रयोग किया जा रहा है इस पर क्या कहना चाहेंगी?
संतोष श्रीवास्तव :- देखिए, भाषा विचारों के आदान-प्रदान का सहज माध्यम है। हमें जो बोलने और समझने में सरल लगता है, उसे हम स्वीकार कर लेते हैं। इसी कारण अन्य भाषाओं के बहुत से शब्दों को हम शामिल करते जा रहे हैं। भाषा तो कोई भी बुरी नहीं होती और समय के साथ होने वाले परिवर्तन को स्वीकार किया जाना चाहिए। साहित्य के क्षेत्र में विशेषकर रचनाओं में भाषा की शुद्धता अपेक्षित है।

जया केतकी :- अन्य साहित्यकारों की तरह आप भी ये मानती हैं कि युवा-पीढ़ी लेखन के क्षेत्र में सटीक नहीं है?
संतोष श्रीवास्तव :- हमारी धारणा है नव युवा पीढ़ी कमजोर है, सटीक नहीं है और पुरानी विचारधारा से मेल नहीं खाती, पर यह पूरी तरह सही नहीं है। मेरा विचार इस बारे में बिल्कुल अलग और पुख्ता हैं। मेरी नजरों में युवा पीढ़ी बेहतरीन, प्रेक्टीकल और सुलझा लिख रही है। हमारे समय के साहित्यकार इमोशनल लिखते आ रहे हैं। मैं अंतरराष्ट्रीय पत्रकार मित्रता संघ की सदस्य हूं, मैंने देखा है, विदेशों में हिन्दी का माहौल सर्वत्र विस्तार पा रहा है। विश्व के मंच पर हिन्दी और हिन्दी का साहित्य बहुत समृद्ध है। रूस, न्यूयार्क में हिन्दी पढ़ाई जाने लगी है। और हमें क्या चाहिए? नए लेखकों के लेखन में जीवन झांकता है, वे लिखते हैं अतीत को छोड़कर वर्तमान से सरोकार रखकर।

जया केतकी :- क्या आप भी ये मानती है पुरूष प्रधान समाज महिलाओं के हक पर हावी है?
संतोष श्रीवास्तव :- मात्र 40 प्रतिशत महिलाएं जो अपना हक़ प्राप्त कर पाती हैं। बाकी 60 प्रतिशत को तो ये भी पता नहीं कि उनके अधिकार क्या हैं? नारी में बहुत शक्ति है। पुरूष पीड़ा नहीं सह सकता। पत्नी की मृत्यु पर पुरुष हताश हो जाता है। नारी पुरुष से अधिक सहनशील होती है। वर्तमान समय में नारी-नर समाज में एक-दूसरे के पूरक है। पुरूष की कमियां देखें तो पायेंगे कि ये धारणा बदल चुकी है। पुरूष भी अब बदल रहे हैं। युवा तो यहा तक पहुंच चुके हैं कि करवा चौथ, तीज जैसे व्रत पत्नी के साथ रखते हैं। बदलते परिवेश की महिलाओं से मेरा कहना है कि स्त्री अपने हक बचा कर रखें, स्वतंत्रता को उच्छृंखलता न समझें।
जया केतकी :- आप किसी विशेष विधा में लिखती हैं?
संतोष श्रीवास्तव :- वैसे तो मेरा सभी विधाओं में हस्तक्षेप है। महिलाओं पर समरलोक नामक पत्रिका में पिछले दस वर्षों से अंगना कालम लिख रही हूँ। सामयिक ‘मुझे जन्म दो माँ‘ । लगभग सभी विधाओं में लिखती हूं। किसी भी विधा में लिखें पर लगातार लिखें। नीलाक्षी सिंह - साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार मिला। उन्होंने अब लिखना लगभग बंद कर दिया है। एकदम से सबकुछ पा लेने के चक्कर में सबकुछ शीघ्रता से पाकर लेखन छोड़ देना उचित नहीं है।
जया केतकी :- उन घरेलू महिलाओं के लिए जो लिखने में इन्ट्रेस्टेड हैं, कोई संदेश देना चाहेंगी?
संतोष श्रीवास्तव :- सबसे पहले उन्हें ये बताया जाए लेखन के मायने क्या है? जिन 60 प्रतिषत स्त्रियों को लेकर लिखा जा रहा है उन महिलाओं तक आवाज नहीं पहुंचती, उनके लिए ऐसा लिखकर समाज को जागृत करें। उन्हें जागरूक बनाएं। मेरा मानना है कि वे इलेक्ट्रानिक मीडिया ने ऐसा किया कि वस्तु उत्पाद बन गईं महिलाएं, फुटपाथ बन गई महिलाएं। स्वयं को वस्तु और उपभोग की सामग्री बनने से बचाएं। एक और बात में कहना चाहूंगी कि एक बार लिखना आरम्भ करें तो निरन्तर लिखें।
जया केतकी :- साहित्य के क्षेत्र में भी गुटबाजी दिखाई देती है अपनी राय दें।
संतोष श्रीवास्तव :- हाँ गुटबाजी दिखाई देती है, मंच का दुरूपयोग करते हैं, छींटाकशी करते हैं। हंस, नया ज्ञानोदय में भी गुटबाजी हो रही है। विज्ञापन और धनराशि के साथ रचनाएं छापते हैं। मैंने स्वयं यह महसूस किया है, देखा है। गुटबाजी से गंभीर लेखनी के धनी और चुपचाप लिखने वाले विलुप्त हो जाते हैं। गुटबाजी से साहित्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है। लेखक समाज के प्रति अपने दायित्व निभाए। स्त्री शिक्षा, जागरूकता कानून की जानकारी ये सब करना जरूरी है। लेकिन पत्रिकाओं में लेखकों के गुट बन गए हैं। अपने-अपने की रचनाएं छापते हैं।
जया केतकी :- साहित्यक आयोजनों से किस प्रकार की उत्कृष्टता आती है?
संतोष श्रीवास्तव :- साहित्यिक आयोजनों से साहित्यकारों को मंच मिलता है। बहुत से साहित्यकारों पर, प्रेमचंद की जयंति, माधवराव सप्रे, माखनलाल चतुर्वेदी आदि पर विचार-विमर्श होते हैं। इस प्रकार के आयोजन से युवा पीढ़ी को जानकारी मिलती है। बच्चन और निराला के समय में आयोजन नहीं होते थे तब चौराहों (चबूतरों)पर कविता पाठ करते थे। आयोजन ही लेखक की बात जन जन तक पहुंचाते हैं। इससे नए साहित्यकारों को सामने आने का अवसर मिलता है।
जया केतकी :- क्या आप भी ये मानती हैं कि साहित्यिक आयोजन, विवाद स्थल में परिणित हो रहे हैं?
संतोष श्रीवास्तव :- हाँ, कुछ स्थानों पर मैंने देखा है। कथाक्रम के आयोजन में छींटाकशी का दौर चला तो सभी एक-दूसरे पर कटाक्ष करने से पीछे नहीं रहे। नाम लेने की धृष्टता मैं नहीं करूँगी पर यह उचित नहीं। व्यक्तिगत विषयों को सार्वजनिक बनाने से बचना चाहिए।

जया केतकी :- क्या इलेक्ट्रानिक मीडिया, प्रिंट मीडिया पर भारी पड़ रहा है?
संतोष श्रीवास्तव :- प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में कोई मुकाबला नहीं, प्रिंट मीडिया में पत्र पत्रिकाओं की भरमार है। हर लेखन प्रेमी जमापूंजी से पत्रिकाएं स्वांन्तः सुखाय संतुष्टि के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। विशुद्ध पत्रिकाओं की कमी है। लिखने की एक सीमा है। आत्म मुग्धता ज्यादा दिखाई देती है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में दिखाई नहीं देता कि कौन संचालक है। सामग्री एकत्रित करना स्वतंत्र लेखन का पर्याय बनता जा रहा है।
जया केतकी :- वर्तमान में पत्रिकाओं की स्थिति पर टिप्पणी करना चाहेंगी?
संतोष श्रीवास्तव :- सूचना क्रांति का प्रभाव लेखन के हर क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। इससे लेखन में गति आई है। आज के समय में पुरानी पत्रिकाओं की जो जगह है वह आज की पत्रिकाएं नहीं बना सकती। पुरानी पत्रिकाएं विषय वस्तु को गिरफ्त में लेकर चलती थी। पहले पत्रिकाओं की संख्या सीमित थी और पाठकों को चयन के अवसर कम थे। अब पत्रिकाओं की भरमार है और पाठकों की व्यस्तता के चलते उनके पास पढ़ने के लिए समय नहीं है। क्या और कितना पढ़ें, इसकी भी समस्या है।
जया केतकी :- वेब पत्रिकाओं के संदर्भ में अपने विचार दें?
संतोष श्रीवास्तव :- ब्लाग, वेब पत्रिका पर शीघ्र प्रतिक्रिया की सुविधा है। वेब पत्रिकाओं का भविष्य उज्जवल है। काफी मेहनत की जा रही है। अच्छा प्रयास है। स्वतंत्रता भी है। जैसा चाहें लिख दें। जिसे पढ़ना होगा पढ़ेगा।
जया केतकी :- संतोष जी आज की कहानियों में देह की ताकत और उन्मुक्त यौन संबंधों के प्रसंग आ रहे हैं, इन्हें आप क्या मानती हैं?
संतोष श्रीवास्तव :- बहुत ज्यादा नहीं! कथाकार आज के संबंधों को उजागर कर रहे हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। हँस के संपादक राजेन्द्र यादव ने देह को आधार बनाकर ऐसी कहानियाँ छापी जो महिलाओं के गोपनीय रहस्य उजागर करती हैं। मेरे हिसाब से स्त्री की आजादी केवल देह की आजादी नहीं है। उससे क्या मिलेगा? आजादी का मतलब है हर तरह से सोचने की आजादी, निर्णय लेने की आजादी, काम करने की, विचारों की आजादी मिले। देह की आजादी से कुछ हासिल नहीं होता। उससे तो कुछ समय बाद महिला स्वयं ग्लानि से भर उठती है।
जया केतकी :- समकालीन कहानियों में कथ्य गायब होते जा रहे हैं यानी बतकहीपन कम हो रहा है और शुष्क गद्यात्मकता प्रभावी हो रही है? आप क्या मानती हैं।
संतोष श्रीवास्तव :- कहानी, उपन्यास सभी में किस्सागोई विलुप्त हो रही है साथ ही कथन के गायब होने का भय दिखाई दे रहा है। मानवीय संवेदनाओं को छूने वाली भाषा भी अदृष्य हो रही है। कहानियों का स्तर निचला होते जा रहा है।
जया केतकी :- स्त्री विमर्श के साथ पुरुष विमर्श की भी आवश्यकता है या भविष्य में हो सकती है?
संतोष श्रीवास्तव :- हाँ जरूर होना चाहिए। पितृ सत्तात्मक गद्दी पर बैठा पुरुष यह मत समझे कि महिला ही विमर्श के लिए है। एक बात और समाज में कुछ पुरुष भी ऐसे हैं जिन पर अत्याचार होता है। इन सब बातों को ध्यान में रखें तो पुरुष विमर्श होना चाहिए। मन्नू भण्डारी ने आवाज उठाई थी।
जया केतकी :- आज के महिला कथाकारों में पसंदीदा कथाकार आप किसे मानती हैं?
संतोष श्रीवास्तव :- आज के कथाकारों का कथानक, शिल्प अपील नहीं करता। ऐसा नहीं कि बुरा लिख रही हैं। पर मुझे किरात उल ऐन हैदर, इस्मत चुगताई, अमृता प्रीतम की रचनाएं ज्यादा आकर्षित करती है।
जया केतकी :- कथा की दुनिया में पिछले एक दशक में आप कौन सी प्रवृत्ति देख रही हैं। भाषा, कथानक, शिल्प के स्तर पर।
संतोष श्रीवास्तव:- भाषा में काफी उठान और पारदर्शिता आई है। शिल्प भी सुधरा है। माध्यम का प्रभाव, कथानक की पकड़ सभी कुछ समय के साथ बदलता है। पाठक को भी जागरूक होना पड़ेगा। वे यह न भूलें कि प्रेमचंद के नाटक दुर्गादास की प्रासंगिकता तत्कालीन थी आज के समय में नहीं हो सकती। हर लेखक की हर रचना अच्छी नहीं हो सकती। प्रेमचंद की गबन को देखिए कितनी अच्छी लिखी गई है।
जया केतकी :- आपको मिले सम्मान से आप संतुष्ट हैं?
संतोष श्रीवास्तव :- संतुष्टि.... यह बड़ा विचित्र शब्द है। मनुष्य की मानसिकता ही ऐसी है उसे पता ही नहीं होता कि वह संतुष्ट है या नहीं । एक क्षेत्र से संतुष्ट होता है तो दूसरे अन्य कारणों से असंतुष्ट रहता है। साहित्य के क्षेत्र में मैं संतुष्ट हूँ। लिख रही हूँ नियमित रूप से और आगे भी लिखती रहूँगी।
जया केतकी :-बहके बसंत तुम‘ कथा संग्रह तथा आपके रचना संसार में प्रतीक और प्रयोगवाद का आविर्भाव विषय पर शोध किया जा रहा है, कैसा लगता है , बताएं?
संतोष श्रीवास्तव :- बहुत ही अच्छा लगता है। पहले जब साहित्यकारों और उनकी रचनाओं पर शोध किया जाता था तो हम सोचते थे क्या कोई और विषय नहीं, पर अब पता चलता है कि यह तो छात्रों की रुचि पर निर्भर करता है। उन्हें जो अच्छा लगता है, जिसकी रचनाएं अच्छी लगती हैं वे उन्हें ही चुनते हैं। मुझे खुशी है।

साक्षात्कारकर्त्री :- जया केतकी
 

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