तुम नाहक टुकड़े चुन चुन कर/ दामन में छुपाए बैठे हो/शीशों का मसीहा कोई नहीं/ क्या आस लगाए बैठे हो।
गज़ल से अपने वक्तव्य की शुरुआत करते हुए मुख्य अतिथि श्री विनोद टीबड़ेवाला ने कहा कि जब तक पंद्रह रुपिए में १ लीटर मिनरल वाटर ख़रीदकर पीने वाले अरबपतियों के समाज में गरीबी रेखा ३२ रुपए तक रहेगी तबतक फ़ैज़ जिंदा रहेंगे। जे.जे.टी विश्वविद्यालय के साहित्यिक विभाग हेमंत फाउंडेशन तथा उर्दू विभाग मुम्बई विश्वविद्यालय द्वारा मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ को समर्पित आयोजन की शुरुआत गीतकार हरीश्चन्द्र की गाई सरस्वती वंदना से हुई। स्वागताध्यक्ष संतोष श्रीवास्तव ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए हेमंत फाउंडेशन द्वारा हिन्दी उर्दू ज़बानों को जोड़ने के प्रयास की चर्चा की तथा फ़ैज़ को पूरी दुनिया का शायर बताया। अध्यक्ष अब्दुस्सत्तार दलवी ने फ़ैज़ के साथ बिताए खूबसूरत लम्हों को याद किया। विशेष अतिथि प्रो.साहेब अली ने अपने वक्तव्य में कहा कि फ़ैज़ की शुरुआती शायरी ट्रेडीशनल थी, बाद में इंकलाबी हो गई। इस आयोजन के प्रमुख वक्ता डा. राम सा़गर पांडे ने जहां एक ओर फ़ैज़ के रुमानी और विद्रोही तेवरों की चर्चा की, वहीं अब्दुल अहद साज़ ने फ़ैज़ की नज़्मों और शायरी में छिपे सौंदर्यीकरण की खूबसूरत बानगी तथा डा. खुर्शीद नोमानी ने फ़ैज़ की नज़्मों में रुमानियत से हकीकत तक की यात्रा पेश की ।
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ कवि आलोक भट्टाचार्य ने यह कहते हुए किया कि आग लगाने के लिए फ़ैज़ साहब को माचिस की तीलियों की जरुरत नहीं पड़ती थी, गुलाब की पंखुड़ियों से ही आग लगा लेते थे। तथा सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कवयित्री सुमीता केशवा ने कहा कि फ़ैज़ की स्मृति में आयोजित यह कार्यक्रम हेमंत फाउंडेशन के इतिहास में दर्ज़ होगा। कार्यक्रम में डा.करुणा शंकर उपाध्याय ब्रजभूषण साहनी अहमद सोज़, जुबैर आज़मी, फ़िरोज़ अशरफ़, खन्ना मुजफ़्फ़पुरी, कुमार शैलेन्द्र, शाहिद खान, रियाज़ मुन्सिफ़, शिल्पा सोनट्क्के, अनीता रवि, नेहा वैद्य, सिब्बन बैज़ी,लक्ष्मी यादव, आफ़ताब आलम,प्रवीण खन्ना, शादाब रशीद, आयशा शेख, तथा नादिरा सहित उर्दू हिन्दी के नामचीन साहित्यकार मौज़ूद थे।
सुमीता केशवा
कार्याध्यक्ष-हेमंत फ़ाउंडेशन
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