Tuesday, May 24, 2011

जया केतकी द्वारा संतोष श्रीवास्तव का साक्षात्कार


जीवन परिचयः मध्यप्रदेश के मंडला जिले में 23 नवम्बर 1958 को जन्म लेकर साहित्य की साधना में 34 वर्ष से रत संतोष जी हँसमुख व्यक्तित्व की धनी हैं। रायपुर प्रवास के दौरान आपसे बातचीत का अवसर प्राप्त हुआ। हाल ही में रायपुर की ‘ऋचा‘ नामक संस्था द्वारा सम्मानित संतोष श्रीवास्तव जी की अब तक 150 से अधिक कहानियाँ प्रकाषित हो चुकी हैं। वर्तमान में मुम्बई के श्री घनश्यामदास पोत्दार महाविद्यालय में शोध समन्वयक के पद पर कार्यरत संतोष जी प्रमुख रूप से स्त्री विमर्श पर आबद्ध हैं। उनके परिवार में उनके पति और बेटे का निधन हो गया है। उनके अनेक कविता संग्रह, कहानी संग्रह तथा उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी कुछ रचनाओं पर छात्रों द्वारा शोध किया जा रहा है।
जया केतकी :- अन्य महिलाओं की तरह स्थापित होने के लिए आपको भी संघर्ष करना पड़ा?
संतोष श्रीवास्तव :- लेखन के क्षेत्र में स्थापित होने के लिए मुझे संघर्ष नहीं करना पड़ा। पढ़े-लिखे प्रतिष्ठित परिवार में मेरा जन्म हुआ। मुझे घर में ही लेखन का माहौल मिला। मेरे बड़े भाई विजय वर्मा लेखक थे। मेरी बहन प्रमिला वर्मा भी लिखती हैं। मैं यदि यह कहूँ कि लेखन ही मेरे जीवन का आधार है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
जया केतकी :- संतोष जी आपकी पहली रचना कौन सी थी?
संतोष श्रीवास्तव :- जब मैंने लिखना आरम्भ किया तो ये नहीं सोचा था कि संभालकर रखूँगी या किसी पत्र-पत्रिका में रचना छपेगी। आरम्भ में मैंने कविताएं ही लिखी। पहली रचना तो याद नहीं आती, पर हाँ 1970 में मेरी पहली कहानी ‘‘शंख और सीपियाँ‘‘ तत्कालीन पत्रिका धर्मयुग में प्रकाशित हुई। उससे मेरा लेखिका होना तय हुआ।
जया केतकी :- आज विभिन्न माध्यमों में हिन्दी का जो प्रयोग किया जा रहा है इस पर क्या कहना चाहेंगी?
संतोष श्रीवास्तव :- देखिए, भाषा विचारों के आदान-प्रदान का सहज माध्यम है। हमें जो बोलने और समझने में सरल लगता है, उसे हम स्वीकार कर लेते हैं। इसी कारण अन्य भाषाओं के बहुत से शब्दों को हम शामिल करते जा रहे हैं। भाषा तो कोई भी बुरी नहीं होती और समय के साथ होने वाले परिवर्तन को स्वीकार किया जाना चाहिए। साहित्य के क्षेत्र में विशेषकर रचनाओं में भाषा की शुद्धता अपेक्षित है।

जया केतकी :- अन्य साहित्यकारों की तरह आप भी ये मानती हैं कि युवा-पीढ़ी लेखन के क्षेत्र में सटीक नहीं है?
संतोष श्रीवास्तव :- हमारी धारणा है नव युवा पीढ़ी कमजोर है, सटीक नहीं है और पुरानी विचारधारा से मेल नहीं खाती, पर यह पूरी तरह सही नहीं है। मेरा विचार इस बारे में बिल्कुल अलग और पुख्ता हैं। मेरी नजरों में युवा पीढ़ी बेहतरीन, प्रेक्टीकल और सुलझा लिख रही है। हमारे समय के साहित्यकार इमोशनल लिखते आ रहे हैं। मैं अंतरराष्ट्रीय पत्रकार मित्रता संघ की सदस्य हूं, मैंने देखा है, विदेशों में हिन्दी का माहौल सर्वत्र विस्तार पा रहा है। विश्व के मंच पर हिन्दी और हिन्दी का साहित्य बहुत समृद्ध है। रूस, न्यूयार्क में हिन्दी पढ़ाई जाने लगी है। और हमें क्या चाहिए? नए लेखकों के लेखन में जीवन झांकता है, वे लिखते हैं अतीत को छोड़कर वर्तमान से सरोकार रखकर।

जया केतकी :- क्या आप भी ये मानती है पुरूष प्रधान समाज महिलाओं के हक पर हावी है?
संतोष श्रीवास्तव :- मात्र 40 प्रतिशत महिलाएं जो अपना हक़ प्राप्त कर पाती हैं। बाकी 60 प्रतिशत को तो ये भी पता नहीं कि उनके अधिकार क्या हैं? नारी में बहुत शक्ति है। पुरूष पीड़ा नहीं सह सकता। पत्नी की मृत्यु पर पुरुष हताश हो जाता है। नारी पुरुष से अधिक सहनशील होती है। वर्तमान समय में नारी-नर समाज में एक-दूसरे के पूरक है। पुरूष की कमियां देखें तो पायेंगे कि ये धारणा बदल चुकी है। पुरूष भी अब बदल रहे हैं। युवा तो यहा तक पहुंच चुके हैं कि करवा चौथ, तीज जैसे व्रत पत्नी के साथ रखते हैं। बदलते परिवेश की महिलाओं से मेरा कहना है कि स्त्री अपने हक बचा कर रखें, स्वतंत्रता को उच्छृंखलता न समझें।
जया केतकी :- आप किसी विशेष विधा में लिखती हैं?
संतोष श्रीवास्तव :- वैसे तो मेरा सभी विधाओं में हस्तक्षेप है। महिलाओं पर समरलोक नामक पत्रिका में पिछले दस वर्षों से अंगना कालम लिख रही हूँ। सामयिक ‘मुझे जन्म दो माँ‘ । लगभग सभी विधाओं में लिखती हूं। किसी भी विधा में लिखें पर लगातार लिखें। नीलाक्षी सिंह - साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार मिला। उन्होंने अब लिखना लगभग बंद कर दिया है। एकदम से सबकुछ पा लेने के चक्कर में सबकुछ शीघ्रता से पाकर लेखन छोड़ देना उचित नहीं है।
जया केतकी :- उन घरेलू महिलाओं के लिए जो लिखने में इन्ट्रेस्टेड हैं, कोई संदेश देना चाहेंगी?
संतोष श्रीवास्तव :- सबसे पहले उन्हें ये बताया जाए लेखन के मायने क्या है? जिन 60 प्रतिषत स्त्रियों को लेकर लिखा जा रहा है उन महिलाओं तक आवाज नहीं पहुंचती, उनके लिए ऐसा लिखकर समाज को जागृत करें। उन्हें जागरूक बनाएं। मेरा मानना है कि वे इलेक्ट्रानिक मीडिया ने ऐसा किया कि वस्तु उत्पाद बन गईं महिलाएं, फुटपाथ बन गई महिलाएं। स्वयं को वस्तु और उपभोग की सामग्री बनने से बचाएं। एक और बात में कहना चाहूंगी कि एक बार लिखना आरम्भ करें तो निरन्तर लिखें।
जया केतकी :- साहित्य के क्षेत्र में भी गुटबाजी दिखाई देती है अपनी राय दें।
संतोष श्रीवास्तव :- हाँ गुटबाजी दिखाई देती है, मंच का दुरूपयोग करते हैं, छींटाकशी करते हैं। हंस, नया ज्ञानोदय में भी गुटबाजी हो रही है। विज्ञापन और धनराशि के साथ रचनाएं छापते हैं। मैंने स्वयं यह महसूस किया है, देखा है। गुटबाजी से गंभीर लेखनी के धनी और चुपचाप लिखने वाले विलुप्त हो जाते हैं। गुटबाजी से साहित्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है। लेखक समाज के प्रति अपने दायित्व निभाए। स्त्री शिक्षा, जागरूकता कानून की जानकारी ये सब करना जरूरी है। लेकिन पत्रिकाओं में लेखकों के गुट बन गए हैं। अपने-अपने की रचनाएं छापते हैं।
जया केतकी :- साहित्यक आयोजनों से किस प्रकार की उत्कृष्टता आती है?
संतोष श्रीवास्तव :- साहित्यिक आयोजनों से साहित्यकारों को मंच मिलता है। बहुत से साहित्यकारों पर, प्रेमचंद की जयंति, माधवराव सप्रे, माखनलाल चतुर्वेदी आदि पर विचार-विमर्श होते हैं। इस प्रकार के आयोजन से युवा पीढ़ी को जानकारी मिलती है। बच्चन और निराला के समय में आयोजन नहीं होते थे तब चौराहों (चबूतरों)पर कविता पाठ करते थे। आयोजन ही लेखक की बात जन जन तक पहुंचाते हैं। इससे नए साहित्यकारों को सामने आने का अवसर मिलता है।
जया केतकी :- क्या आप भी ये मानती हैं कि साहित्यिक आयोजन, विवाद स्थल में परिणित हो रहे हैं?
संतोष श्रीवास्तव :- हाँ, कुछ स्थानों पर मैंने देखा है। कथाक्रम के आयोजन में छींटाकशी का दौर चला तो सभी एक-दूसरे पर कटाक्ष करने से पीछे नहीं रहे। नाम लेने की धृष्टता मैं नहीं करूँगी पर यह उचित नहीं। व्यक्तिगत विषयों को सार्वजनिक बनाने से बचना चाहिए।

जया केतकी :- क्या इलेक्ट्रानिक मीडिया, प्रिंट मीडिया पर भारी पड़ रहा है?
संतोष श्रीवास्तव :- प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में कोई मुकाबला नहीं, प्रिंट मीडिया में पत्र पत्रिकाओं की भरमार है। हर लेखन प्रेमी जमापूंजी से पत्रिकाएं स्वांन्तः सुखाय संतुष्टि के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। विशुद्ध पत्रिकाओं की कमी है। लिखने की एक सीमा है। आत्म मुग्धता ज्यादा दिखाई देती है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में दिखाई नहीं देता कि कौन संचालक है। सामग्री एकत्रित करना स्वतंत्र लेखन का पर्याय बनता जा रहा है।
जया केतकी :- वर्तमान में पत्रिकाओं की स्थिति पर टिप्पणी करना चाहेंगी?
संतोष श्रीवास्तव :- सूचना क्रांति का प्रभाव लेखन के हर क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। इससे लेखन में गति आई है। आज के समय में पुरानी पत्रिकाओं की जो जगह है वह आज की पत्रिकाएं नहीं बना सकती। पुरानी पत्रिकाएं विषय वस्तु को गिरफ्त में लेकर चलती थी। पहले पत्रिकाओं की संख्या सीमित थी और पाठकों को चयन के अवसर कम थे। अब पत्रिकाओं की भरमार है और पाठकों की व्यस्तता के चलते उनके पास पढ़ने के लिए समय नहीं है। क्या और कितना पढ़ें, इसकी भी समस्या है।
जया केतकी :- वेब पत्रिकाओं के संदर्भ में अपने विचार दें?
संतोष श्रीवास्तव :- ब्लाग, वेब पत्रिका पर शीघ्र प्रतिक्रिया की सुविधा है। वेब पत्रिकाओं का भविष्य उज्जवल है। काफी मेहनत की जा रही है। अच्छा प्रयास है। स्वतंत्रता भी है। जैसा चाहें लिख दें। जिसे पढ़ना होगा पढ़ेगा।
जया केतकी :- संतोष जी आज की कहानियों में देह की ताकत और उन्मुक्त यौन संबंधों के प्रसंग आ रहे हैं, इन्हें आप क्या मानती हैं?
संतोष श्रीवास्तव :- बहुत ज्यादा नहीं! कथाकार आज के संबंधों को उजागर कर रहे हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। हँस के संपादक राजेन्द्र यादव ने देह को आधार बनाकर ऐसी कहानियाँ छापी जो महिलाओं के गोपनीय रहस्य उजागर करती हैं। मेरे हिसाब से स्त्री की आजादी केवल देह की आजादी नहीं है। उससे क्या मिलेगा? आजादी का मतलब है हर तरह से सोचने की आजादी, निर्णय लेने की आजादी, काम करने की, विचारों की आजादी मिले। देह की आजादी से कुछ हासिल नहीं होता। उससे तो कुछ समय बाद महिला स्वयं ग्लानि से भर उठती है।
जया केतकी :- समकालीन कहानियों में कथ्य गायब होते जा रहे हैं यानी बतकहीपन कम हो रहा है और शुष्क गद्यात्मकता प्रभावी हो रही है? आप क्या मानती हैं।
संतोष श्रीवास्तव :- कहानी, उपन्यास सभी में किस्सागोई विलुप्त हो रही है साथ ही कथन के गायब होने का भय दिखाई दे रहा है। मानवीय संवेदनाओं को छूने वाली भाषा भी अदृष्य हो रही है। कहानियों का स्तर निचला होते जा रहा है।
जया केतकी :- स्त्री विमर्श के साथ पुरुष विमर्श की भी आवश्यकता है या भविष्य में हो सकती है?
संतोष श्रीवास्तव :- हाँ जरूर होना चाहिए। पितृ सत्तात्मक गद्दी पर बैठा पुरुष यह मत समझे कि महिला ही विमर्श के लिए है। एक बात और समाज में कुछ पुरुष भी ऐसे हैं जिन पर अत्याचार होता है। इन सब बातों को ध्यान में रखें तो पुरुष विमर्श होना चाहिए। मन्नू भण्डारी ने आवाज उठाई थी।
जया केतकी :- आज के महिला कथाकारों में पसंदीदा कथाकार आप किसे मानती हैं?
संतोष श्रीवास्तव :- आज के कथाकारों का कथानक, शिल्प अपील नहीं करता। ऐसा नहीं कि बुरा लिख रही हैं। पर मुझे किरात उल ऐन हैदर, इस्मत चुगताई, अमृता प्रीतम की रचनाएं ज्यादा आकर्षित करती है।
जया केतकी :- कथा की दुनिया में पिछले एक दशक में आप कौन सी प्रवृत्ति देख रही हैं। भाषा, कथानक, शिल्प के स्तर पर।
संतोष श्रीवास्तव:- भाषा में काफी उठान और पारदर्शिता आई है। शिल्प भी सुधरा है। माध्यम का प्रभाव, कथानक की पकड़ सभी कुछ समय के साथ बदलता है। पाठक को भी जागरूक होना पड़ेगा। वे यह न भूलें कि प्रेमचंद के नाटक दुर्गादास की प्रासंगिकता तत्कालीन थी आज के समय में नहीं हो सकती। हर लेखक की हर रचना अच्छी नहीं हो सकती। प्रेमचंद की गबन को देखिए कितनी अच्छी लिखी गई है।
जया केतकी :- आपको मिले सम्मान से आप संतुष्ट हैं?
संतोष श्रीवास्तव :- संतुष्टि.... यह बड़ा विचित्र शब्द है। मनुष्य की मानसिकता ही ऐसी है उसे पता ही नहीं होता कि वह संतुष्ट है या नहीं । एक क्षेत्र से संतुष्ट होता है तो दूसरे अन्य कारणों से असंतुष्ट रहता है। साहित्य के क्षेत्र में मैं संतुष्ट हूँ। लिख रही हूँ नियमित रूप से और आगे भी लिखती रहूँगी।
जया केतकी :-बहके बसंत तुम‘ कथा संग्रह तथा आपके रचना संसार में प्रतीक और प्रयोगवाद का आविर्भाव विषय पर शोध किया जा रहा है, कैसा लगता है , बताएं?
संतोष श्रीवास्तव :- बहुत ही अच्छा लगता है। पहले जब साहित्यकारों और उनकी रचनाओं पर शोध किया जाता था तो हम सोचते थे क्या कोई और विषय नहीं, पर अब पता चलता है कि यह तो छात्रों की रुचि पर निर्भर करता है। उन्हें जो अच्छा लगता है, जिसकी रचनाएं अच्छी लगती हैं वे उन्हें ही चुनते हैं। मुझे खुशी है।

साक्षात्कारकर्त्री :- जया केतकी

1 comment:

Anonymous said...

जया जी बहुत ही सुन्दर साक्षात्कार है...बहुत खूबसूरत आपके सवाल हैं...बहुत-बहुत बधाई!!!!

 

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